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दिल्ली की मिठाई की दुकानों तक पहुंचा छत्तीसगढ़ का यह पेड़ा


छत्तीसगढ़ का हसौद पेड़ा: छोटे गांव से दिल्ली तक छाया स्वाद का जादू


छत्तीसगढ़ का एक छोटा सा गांव हसौद इन दिनों अपनी खास मिठाई 'हसौद पेड़ा' के कारण पूरे देश में प्रसिद्धि बटोर रहा है। यह पेड़ा न केवल छत्तीसगढ़ के बिलासपुर, रायपुर, रायगढ़, खरसिया, बरमकेला, सरिया, सारंगढ़, बसना, सरायपाली जैसे प्रमुख शहरों में डिमांड में है, बल्कि इसकी मिठास ने अब दिल्ली, विशाखापट्टनम सहित देश के अन्य राज्यों में भी अपनी जगह बना ली है।



गांव की मिठाई, देशभर की पहचान


हसौद पेड़ा की यह सफलता यूं ही नहीं मिली। इसके पीछे हैं गंगाधर यादव, जिन्होंने मात्र पांच वर्ष पूर्व इस मिठाई की दुकान की शुरुआत की थी। गंगाधर यादव बताते हैं कि पेड़ा भले ही आज प्रसिद्ध हो गया है, लेकिन इसकी विधि पूरी तरह पारंपरिक है। बिना किसी मशीन के, पुराने देसी तरीके से यह मिठाई बनाई जाती है। यही कारण है कि इसका स्वाद लोगों की जुबान पर चढ़ गया है।


दिल्ली की मिठाई की दुकानों तक पहुंचा पेड़ा


आज हसौद पेड़ा सिर्फ छत्तीसगढ़ तक सीमित नहीं है। दिल्ली की मिठाई की दुकानों में भी यह पेड़ा मिलने लगा है। गंगाधर यादव के पास अब ऑनलाइन ऑर्डर और फोन कॉल से भी बुकिंग आने लगी हैं। ग्राहक इसे न केवल शादी-ब्याह और त्यौहारों पर मंगाते हैं, बल्कि रोजमर्रा के लिए भी इसकी डिमांड बनी हुई है।


कीमत और बिक्री


हसौद पेड़ा की कीमत काफी सुलभ और वाजिब है। दो किस्मों में मिलने वाले पेड़े की कीमत 350 से 400 रुपये प्रति किलो तक है। इसकी रोजाना बिक्री 50 से 100 किलो तक पहुंच चुकी है, जो अपने आप में इस मिठाई की लोकप्रियता को दर्शाता है।


गुणवत्ता ही है सफलता की कुंजी


गंगाधर यादव मानते हैं कि गुणवत्ता से कभी समझौता नहीं किया गया। यही वजह है कि जो भी ग्राहक एक बार हसौद पेड़ा खाता है, वह बार-बार ऑर्डर देता है। उनका सपना है कि आने वाले वर्षों में इस मिठाई को राष्ट्रीय स्तर पर ब्रांड बनाया जाए, ताकि छत्तीसगढ़ का नाम और भी ऊंचा हो सके।

हसौद पेड़ा न सिर्फ स्वाद में उत्कृष्ट है, बल्कि यह एक प्रेरणा भी है – कि किस तरह एक छोटे से गांव की देसी मिठाई मेहनत, गुणवत्ता और परंपरा के बलबूते पर देशव्यापी पहचान बना सकती है। अगर आप भी पारंपरिक मिठाइयों के शौकीन हैं, तो हसौद पेड़ा जरूर आजमाएं।


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