टॉप प्रोजेक्ट और टमाटर की कीमतों में वृद्धि: एक विस्तृत विश्लेषण:
टॉप प्रोजेक्ट क्या है?
टॉप प्रोजेक्ट (Tomato, Onion, Potato - TOP) भारत सरकार द्वारा 2018-19 में शुरू की गई एक पहल है, जिसका उद्देश्य टमाटर, प्याज और आलू जैसी आवश्यक सब्जियों की कीमतों में अस्थिरता को नियंत्रित करना है। ये तीनों सब्जियां भारतीय रसोई का अभिन्न हिस्सा हैं, और इनकी कीमतों में उतार-चढ़ाव से उपभोक्ताओं और किसानों दोनों को नुकसान होता है। इस प्रोजेक्ट के तहत, सरकार ने निम्नलिखित कदम उठाए हैं:
बफर स्टॉक: कीमतों को स्थिर रखने के लिए इन सब्जियों का बफर स्टॉक बनाया गया।
बेहतर भंडारण: कोल्ड स्टोरेज और अन्य भंडारण सुविधाओं को बढ़ावा देना।
आपूर्ति श्रृंखला में सुधार: उत्पादन से लेकर बाजार तक की प्रक्रिया को सुचारू करना।
किसानों को समर्थन: न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) और अन्य योजनाओं के माध्यम से किसानों को नुकसान से बचाना।
टॉप प्रोजेक्ट का लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि उपभोक्ताओं को उचित मूल्य पर ये सब्जियां मिलें और किसानों को उनकी उपज का उचित दाम मिले।
टमाटर की कीमतों में वृद्धि के कारण
टमाटर की कीमतों में भारी वृद्धि देखी गई। इसके पीछे कई कारण हैं, जिनमें प्राकृतिक, आर्थिक और आपूर्ति श्रृंखला से संबंधित कारक शामिल हैं:
प्रतिकूल मौसम और हीट वेव:
टमाटर की फसल के लिए आदर्श तापमान 20-24°C होता है। मई-जून 2023 में, भारत के कई हिस्सों में लू (हीट वेव) के कारण तापमान 35°C या उससे अधिक हो गया। इससे टमाटर के फलन पर बुरा असर पड़ा, क्योंकि उच्च तापमान में फल या तो नहीं लगते या उनकी गुणवत्ता खराब हो जाती है।
कुछ क्षेत्रों में बेमौसम बारिश और अनियमित वर्षा ने भी फसलों को नुकसान पहुंचाया।
पिछले सीजन का प्रभाव:
2022 में टमाटर की कीमतें कई जगह 5-6 रुपये प्रति किलो तक गिर गई थीं, जिससे किसानों को भारी नुकसान हुआ। तुड़ाई की लागत भी नहीं निकल पाई थी। परिणामस्वरूप, कई किसानों ने अपनी फसल खेतों में ही छोड़ दी, जिससे आपूर्ति श्रृंखला प्रभावित हुई।
इस नुकसान के कारण 2023 में कई किसानों ने टमाटर की खेती कम कर दी, जिससे कुल उत्पादन में कमी आई।
कीट और रोग का प्रकोप:
दक्षिण भारत, विशेष रूप से कर्नाटक और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में, जहां टमाटर की खेती बड़े पैमाने पर होती है, व्हाइट फ्लाई (सफेद मक्खी) नामक कीट का प्रकोप देखा गया। यह कीट टमाटर के पौधों में लीफ कर्ल वायरस को तेजी से फैलाता है, जिससे फसल को भारी नुकसान हुआ।
अन्य रोगों, जैसे ब्लाइट और बैक्टीरियल विल्ट, ने भी कुछ क्षेत्रों में उत्पादन को प्रभावित किया।
आपूर्ति श्रृंखला की समस्याएं:
कम उत्पादन और पिछले साल के नुकसान के कारण कई किसानों ने टमाटर को जल्दी-जल्दी कम कीमतों पर बेच दिया या फसल की तुड़ाई ही नहीं की। इससे उन क्षेत्रों में टमाटर की कमी हो गई जहां इसकी खेती कम होती है।
परिवहन और भंडारण सुविधाओं की कमी ने भी कीमतों को बढ़ाने में योगदान दिया।
बाजार की मांग और आपूर्ति का असंतुलन:
टमाटर की मांग साल भर लगभग स्थिर रहती है, लेकिन 2023 में कम उत्पादन के कारण आपूर्ति में कमी आई। इससे बाजार में कीमतें तेजी से बढ़ीं। कुछ शहरों में टमाटर की कीमतें 100-150 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गईं।
अन्य कारक:
वैश्विक स्तर पर उर्वरकों और कीटनाशकों की कीमतों में वृद्धि ने भी खेती की लागत बढ़ा दी, जिसका असर उत्पादन और कीमतों पर पड़ा।
कुछ क्षेत्रों में मजदूरों की कमी और बढ़ती मजदूरी ने भी तुड़ाई और परिवहन की लागत को प्रभावित किया।
टॉप प्रोजेक्ट की चुनौतियां
हालांकि टॉप प्रोजेक्ट ने कीमतों को स्थिर करने में कुछ हद तक सफलता हासिल की है, लेकिन यह प्राकृतिक कारकों जैसे मौसम और कीट प्रकोप को पूरी तरह नियंत्रित नहीं कर सकता। इसके अलावा, भंडारण और परिवहन सुविधाओं को और बेहतर करने की जरूरत है। सरकार ने कोल्ड स्टोरेज और वेयरहाउसिंग को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं, लेकिन इनका प्रभाव ग्रामीण क्षेत्रों तक पूरी तरह नहीं पहुंच पाया है।
संभावित समाधान
जलवायु-प्रतिरोधी किस्में: टमाटर की ऐसी किस्में विकसित करना जो उच्च तापमान और कीटों के प्रति अधिक सहनशील हों।
बेहतर भंडारण और परिवहन: कोल्ड स्टोरेज और रेफ्रिजरेटेड परिवहन की सुविधाओं का विस्तार।
किसान जागरूकता: किसानों को कीट प्रबंधन और आधुनिक खेती तकनीकों के बारे में प्रशिक्षण देना।
बाजार हस्तक्षेप: सरकार द्वारा बफर स्टॉक को और प्रभावी ढंग से उपयोग करना और समय पर बाजार में आपूर्ति करना।
वैकल्पिक फसल प्रोत्साहन: उन क्षेत्रों में जहां टमाटर की खेती जोखिम भरी है, अन्य लाभकारी फसलों को बढ़ावा देना।
निष्कर्ष
2023 में टमाटर की कीमतों में वृद्धि प्राकृतिक, आर्थिक और आपूर्ति श्रृंखला से जुड़े कारकों का परिणाम थी। टॉप प्रोजेक्ट ने इस तरह की समस्याओं को कम करने की दिशा में कुछ प्रगति की है, लेकिन इसे और प्रभावी बनाने के लिए नीतिगत और तकनीकी सुधारों की जरूरत है। किसानों और उपभोक्ताओं दोनों के हितों को संतुलित करने के लिए दीर्घकालिक रणनीतियों की आवश्यकता है।
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